Tuesday 10 June 2014

विकास की स्पीड पर भारी बेटियों की चीखें!

दो बहनों से सामूहिक बलात्कार के बाद पेड़ से लटकाया। सामूहिक बलात्कार के बाद लड़की को तेजाब पिलाया। युवती से सामूहिक बलात्कार के बाद जलाया। प्रेमी युगल पेड़ से लटकाकर फांसी दी। छह साल की बच्ची से रेप! इन दिनों यूपी की यह दिल दहला देने वाली तस्वीर उभरकर सामने आई है। यहां बलात्कार की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं। लड़कियां घर से कदम निकालने के नाम पर सहम रही हैं। जाहिर है इस तरह की खबरें सुनकर तो सभ्य समाज के इंसानी दिल दहल ही जाने चाहिए। रोंगटे खड़े हो जाने चाहिए। दिन का सुकून और रातों की नींद उड़ जानी चाहिए पर अफसोस महिलाओं के साथ बर्बरता पर कानून व्यवस्था के जिम्मेदारों की सेहत पर कोई असर होता नहीं दिखाई दे रहा। प्रदेश की बेटियों के साथ क्रूर से क्रूरतम अपराध घटित हो रहे हैं। सत्ताधारी या रसूख-दबदबे वाले लोग त्वरित और कड़ी कार्रवाई के बजाय अपराधियों के हौसले बुलंद करने वाले बयान दे रहे हैं। सवाल पूछे जाने पर प्रदेश की सत्तारूढ़ सरकार के मुखिया कहते हैं-‘‘हम अपना काम कर रहे हैं, आप अपना काम कीजिए‘‘। पर हकीकी मायनों में महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े काम हो रहे होते तो कानून-व्यवस्था की चूलें इस कदर ढ़ीली न होतीं। प्रतिदिन कम से कम 10 बलात्कार की घटनाएं प्रकाश में न आतीं। सिसकियां ले रही कराह रही बेटियों की चीखों की गंूज दूसरे देशों तक न पहंुचती। संयुक्त राष्ट के महासचिव ‘बान की मून‘ की ओर से बदायंू की बर्बरता पर कार्रवाई की मांग न की जाती। भारत में महिलाओं पर हो रही हिंसा पर अमेरिका हैरानी न जताता। पर देश की छवि खराब होती है तो क्या सत्ता का नशा उतरने वाला नहीं। यह तो सिर चढ़कर बोल रहा है। जिम्मेदार तो कहते हैं कि और जगहों पर भी बलात्कार होते हैं। उत्तर प्रदेश को बेवजह ही निशाना बनाया जा रहा है। यानि यह कोई खास बाद नहीं। हल्ला मचाने की कोई जरूरत नहीं। हद हो गई महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर संवेदनहीनता की। बदायंू में दो नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार और उनकी नृशंस हत्या कर पेड़ से लटकाए जाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ। सभी आरोपी पकड़े तक नहीं गए कि मुज्जफरनगर, अमेठी, मेरठ, गुड़गांव, राजस्थान, सहित प्रदेश और देश के अन्य इलाकों से भी मासूम बच्चियों और युवतियों के साथ बलात्कार के दो दर्जन से ज्यादा मामले प्रकाश में आए गए। हद तो यह है कि महिला मुख्यमंत्री वाले प्रदेश राजस्थान में भी बलात्कार के मामले प्रकाश में आ रहे हैं। जहां आरोप-प्रत्यारोप से ही जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेने का दौर चल पड़ा हो वहां वसंुधरा राजे भी यह कहकर पल्ला झाड़ सकती हैं कि यूपी से भयावह स्थिति तो राजस्थान की नहीं है।
देश-प्रदेश की बेटियां खून के आंसू रो रही हैं पर आम जनता की रहनुमाई व हिफाजत के दावे करने वाले नेता महिलाओं की अस्मत की चिता पर भी राजनीति की रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रहे। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। घटनास्थल पर हेलीकाॅप्टर से उतरते हैं। मिनरल वाॅटर पीते हैं। एसी गाडि़यों में बैठकर बलात्कार पीडि़त लड़कियों के घर का टूर करते हैं लेकिन इसके बाद भी अपनी ताकत और पद का इस्तेमाल अगला बलात्कार रोकने में नहीं कर पाते। लानत है ऐसे रसूख पर जो कमजोर व निर्बल की रक्षा न कर सके। मीडियावालों! बलात्कारों पर ब्रेकिंग न्यूज दे देकर विकास का मंुह ताक रहे दूर-दराज के गावों में मेले चाहे जितने लगवा लो। बाॅलीवुड वालों तुम क्यों रह गए। तुम भी आओ, बदायंू और उन्नाव की वीभत्स सत्य घटनाओं और उसपर चल रही नौटंकी पर ‘पीपली लाइव-टू-थ्री, बना लो। कुछ नहीं होने वाला। कुछ नहीं बदलने वाला। क्योंकि विश्व पटल पर संवेदनशीलता का ढ़ोंग रचाने वाला हमारा देश हकीकत में रोबोटिक युग में प्रवेश कर गया है। हम विदेशी ढर्रों का अनुसरण करते हुए डिब्बाबंद लंच-डिनर ले रहे हैं। ब्रांडेड पोशाकें पहन रहे हैं। हमारे पास बीएमडबल्यू और फेरारी जैसी कारें हैं। बस नहीं है तो स्त्री के प्रति संवेदना। वह भावनाएं नहीं हैं जो पर स्त्री को भी अपनी मां, बहन बेटी की तरह देखने की दृष्टि प्रदान करे। देश की गरीब और आम बेटियां भी यह बात जितनी जल्दी समझ लें उनके लिए उतना ही अच्छा रहेगा। क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा के उपायों पर खुद ही विचार-विमर्श करना होगा। कठोर कदम उठाने होंगे। उन्हें समझना होगा कि हमारे देश-प्रदेश का शासकीय व सत्ताधारी तंत्र नपंुसक हो चला है, जो बेटियों की सुरक्षा की दिशा में कोई सकारात्मक फल देने में लाचार नजर आता है। क्या हुआ जो देश की छवि खराब हो रही है। इसकी मरम्मत सत्ताधारी अपनी कूटनीति से बाद में कर ही लेंगे।
जब किसी ‘वैश्विक महिला सम्मेलन‘ में विदेश से बुलावा आएगा तो बेटियों की तरक्की से संबंधित तमाम आंकड़े इकट्ठे करके फेहरिस्त पढ़कर सुना देंगे। बता देंगे कि यूपी में दलित समुदाय से अपनी पहचान बनाने वाली बहनजी मायावती भारत की उपलब्धि हैं। जिन्होंने बतौर मुख्यमंत्री प्रदेश की कमान चार बार सम्भाली है। वह दलित समुदाय की बेटियों के अधिकारों की झण्डाबरदार हैं। सीनातानकर कह देंगे कि वर्तमान समय में विधानसभा में 35 महिला एमपी हैं। देश के पास चार महिला मुख्यमंत्री हैं। आमचुनाव-2014 से 61 महिला सांसद चुनकर लोकसभा में भेजी गई हैं। अच्छे दिनों का सपना दिखाने वाले प्रधानमंत्री मोदी हैं। उनकी कैबिनेट में भी सात शक्तिशाली महिलाओं को जगह दी गई है। हमारे पास दो दर्जन से ज्यादा एक्सप्रेस-वे हैं। हम डबल डेकर फलाई ओवरों का निर्माण कर रहे हैं। हमने अग्नि-5 जैसी मिसाइल बना ली है। महिलाओं को खेत-खलिहानों में शौच के लिए न जाना पड़े इसके लिए ‘निर्मल ग्राम‘ योजना है। तो क्या हुआ योजना के लागू होने के बाद भी प्रचार ज्यादा और काम कम हुआ है। ग्रामीण इलाकों के 50 फीसदी घरों में शौचालय का निर्माण नहीं हो सका है। आप ये बलात्कार-वलात्कार जैसी बेकार की चर्चाएं छोडि़ए हमारे विकास के दूसरे पहलुओं पर नजर डालिए और तालियां बजाईए।
‘कल्पतरु एक्सप्रेस‘ में प्रकाशित लेख। फोटो ‘गूगल‘ से साभार।



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